Thursday, August 8, 2013

नया दौर !

बड़े-बड़ों के हौंसले, सियासत की चौखट पर डिग जाते है,
खुदा मेहरबां हो तो सर पे गधों के भी ताज टिक जाते है।  
वो दुप्पट्टे, वो चुनर, गँवा लेती हैं जिनको लुटी अस्मतें,  
जनपथ की फुटपाथ-हाट पे अकसर, वो भी बिक जाते हैं।  


























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सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...