Friday, March 8, 2013

अबला-गुहार !









हे धृतराष्ट्र !
साल में एक दिन
तुम कहते हो कि 
आज महिला दिवस है,
साथ ही यह भी जानते हो 
कि गांधारी के  इस राज में,
महिला कितनी विवश है।    
याद रखो, 
इतिहास साक्षी है 
कि  इस धरा पर जब-जब
नारी दमन हुआ है,
उसके तुरंत बाद 
कुरुक्षेत्र और लंका दहन हुआ है।    







9 comments:

  1. बढ़िया है आदरणीय-

    हदे पार करते रहे, जब तब दुष्टाबादि |
    *अहक पूरते अहर्निश, अहमी अहमक आदि |
    अहमी अहमक आदि, आह आदंश अमानत |
    करें नारि-अपमान, इन्हें हैं लाखों लानत |
    बहन-बेटियां माय, सुरक्षित प्रभुवर करदे |
    नाकारा कानून व्यवस्था व्यर्थ ओहदे ||

    *इच्छा / मर्जी

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  2. याद रखो, इतिहास साक्षी है
    कि जब-जब इस धरती पर,
    नारी दमन हुआ है,
    उसके तुरंत बाद
    कुरुक्षेत्र और लंका दहन भी हुआ है।,,,,
    सटीक पंक्तियाँ,,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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  3. नारी के ऊपर अन्याय करने वाले नामर्द हैं.

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  4. सुन्दर और सटीक प्रस्तुति सुन्दर विचार

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  5. याद रखो, इतिहास साक्षी है
    कि जब-जब इस धरती पर,
    नारी दमन हुआ है,
    उसके तुरंत बाद
    कुरुक्षेत्र और लंका दहन भी हुआ है।

    ...बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति...

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  6. नारी की लाज बची होती तो महाभारत न होता, अब तो तय है।

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  7. बहुत ओजपूर्ण रचना है,चेतावनी देती-सी,
    इसका शीर्षक इतना दयनीय न हो वही भाव दर्शाता तो सोने में सुहागे हो जाता!

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  8. बहुत ही प्रस्शत रचना, शुभकामनाएं

    रामराम.

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