Sunday, December 26, 2010

जिन बच्चों को झूठ सिखाया जाता है उनकी नस्ल हिंसक होती है - भगवान बुद्ध !

वैसे फिलहाल इस तरह का लेख लिखने के कदाचित मूड मे न था, किन्तु इन्सान के आस-पास जब कुछ घट्नाये ऐंसी जन्म ले लेती है, जो कहीं उसके मानस पटल पर कुछ उद्वेलित भाव छोड जायें, तो निश्चिततौर पर इन्सान अपने आन्तरिक भावों को नियंत्रण मे रख पाने मे दिक्कत महसूस करता है. और ऐसा ही कुछ मै भी महसूस कर रहा था.

इस पावन-भूमि पर समय-समय पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया, और आज हम उन्हे भगवान के शीर्ष रखने की कोशिश इसीलिये करते हैं क्योंकि हजारों साल पहले उनके द्वारा सिखाया गया बौद्धिक, आद्ध्यात्मिक और व्याव्हारिक आचरण आज भी सौ प्रतिशत प्रसांगिक हैं, और समय की कसौटी पर एकदम खरा उतरता हैं. वो आज भी हमारे लिये प्रेरणास्रोत का काम करता है. भगवान बुद्ध भी अपने समय की एक ऐसी ही दिव्य, आलौकिक ह्स्ती थे, जिन्होने कहा था कि जिन बच्चों को झूठ सिखाया जाता है उनकी नस्ल हिंसक होती है . अभी कुछ दिनों पहले यानि १६ दिसम्बर, जिस दिवस को आज से ४० साल पहले भारत ने पाकिस्तान पर एक निर्णायक विजय प्राप्त की थी, और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश), पश्चिमी पाकिस्तान से अलग हुआ था, उसके बारे मे भारतीय मीडिया की वेब साइटों पर खास कुछ नया न पाकर. उत्सुक्ताबश मैं पाकिस्तान की एक वेब-साइट पर इसी से सम्बंधित एक लेख पढ रहा था, और पढ्ते-पढते कालेज के दिनों मे एक सहपाठी के पाकिस्तानी समुदाय विशेष के प्रति कहे गये वे शब्द फ़िर यकायक याद आ गये कि ये लोग झूठ बहुत बोलते है, इनकी कथनी और करनी मे बहुत फर्क है, अगर ये अपने को पाक-साफ़ साबित करने के लिये सबूत के तौर पर छन्नी मे भरकर पानी भी तुम्हारे सामने ले आयें, तब भी इन पर विश्वाश मत करो.

कभी सोचता हूं कि पता नही इन्हें सच स्वीकारने और कहने मे इतनी दिक्कत क्यों होती है.पाकिस्तान के बच्चों को आज भी उनके स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों मे तथ्यों से परे बांग्लादेश से सम्बन्धित १९७१ के युद्ध और उसमे भारत, खासकर हिन्दुओं की भूमिका से सम्बन्धित जहर इस कदर भर के रखा गया है कि दसवीं का पाठ्यक्रम पूरा करते ही हजारों कसाब पाकिस्तान की सरजमीं पर स्वत: पैदा हो जायें. लेकिन अफ़सोस तब और भी अधिक होता है जब वहां का शिक्षित कहा जाने वाला मीडिया भी वास्तविक तथ्यों को न पेश कर अपने पारम्परिक धर्म का पालन करते हुए, बांग्लादेशी अशान्ति के लिये एक बहुत ही बेहुदा कारण यह प्रस्तुत करता है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) मे स्कूलों मे हिन्दु शिक्षक ही अधिक थे, इसलिये उन्होनें बांग्लादेशी बच्चों को सिर्फ़ पाकिस्तान के खिलाफ़ पाठ पढाया, इसलिये पाकिस्तान के खिलाफ़ वहां अशान्ति बढी.

पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश मे किस कदर अत्याचार और व्यभिचार फैलाया, इसका इससे बडा और क्या सबूत हो सकता है कि गिनीज बुक मे बांग्लादेश मे पाकिस्तानी सेना की करतूतें दुनियां के पांच सबसे बडे नरसंहारों मे सम्मिलित है. और इनके झूठ की हद देखिये कि जहां बांग्लादेश इसमे कुल ३० लाख लोगों के मारे जाने की बात कहता है, वहीं पाकिस्तानी सरकार द्वारा गठित आयोग सिर्फ़ २६००० नागरिक मौतों की बात करता है. और यह वास्तविकता से कितने परे है, उस बात का अन्दाजा आप इस पैराग्राफ़ को पढ्कर लगा सकते है;

"The human death toll over only 267 days was incredible. Just to give for five out of the eighteen districts some incomplete statistics published in Bangladesh newspapers or by an Inquiry Committee, the Pakistani army killed 100,000 Bengalis in Dacca, 150,000 in Khulna, 75,000 in Jessore, 95,000 in Comilla, and 100,000 in Chittagong. For eighteen districts the total is 1,247,000 killed. This was an incomplete toll, and to this day no one really knows the final toll. Some estimates of the democide [Rummel's "death by government"] are much lower — one is of 300,000 dead — but most range from 1 million to 3 million. … The Pakistani army and allied paramilitary groups killed about one out of every sixty-one people in Pakistan overall; one out of every twenty-five Bengalis, Hindus, and others in East Pakistan. If the rate of killing for all of Pakistan is annualized over the years the Yahya martial law regime was in power (March 1969 to December 1971), then this one regime was more lethal than that of the Soviet Union, China under the communists, or Japan under the military (even through World War II). (Rummel, Death By Government, p. 331.)"

वैसे ये इस्लाम के सिपहसलार मुसलमानों के मुद्दे पर विश्व-बन्धुत्व की बात बडे जोर-शोरों से करते है, उनके हक मे एकजुट होकर लडने की बात करते है, जोकि दुनियां का एक और सबसे बडा झूठ है. बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान, इराक मे इन्ही के द्वारा मुसलमानों का कत्लेआम, इससे बेहतर और क्या उदाहरण पेश किये जा सकते हैं इनके विश्व-बन्धुत्व के. पाकिस्तानी आज भी बांग्लादेशियों को, बिहारी मुसलमानों को अपने से निचले दर्जे का समझते है. शिया-सुन्नी का ३६ का आंकडा तो पुराना है ही, और बात करेंगे इस्लामिक बिरादरी की, निन्दा करेगे हिन्दु जाति-वाद की, हिन्दु राष्ट्रवाद की. कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि इनका विश्व-बन्धुत्व सिर्फ़ नफ़रत और हिंसा फैलाने मात्र के लिये ही है.

अन्त मे उस बात का जिक्र करना भी उचित होगा, जिसने मुझे यह लिखने को प्रोत्साहित किया कह लो या यूं कह लो कि मजबूर किया. जैसा कि आप लोग भी जानते होंगे कि अभी कुछ ही रोज पहले भारत की डाक्टर शालिनी चावला सउदी अरब से रिहा होकर अपने पति डा० आशीष चावला के शव के साथ भारत वापस लौटी. पिछले ११ महिने मे उन्होनें सउदी अरब के जालिमों के हाथों क्या-क्या जुल्म सहे, मीडिया के मार्फ़त आप लोग भी वाकिफ़ होंगे. और वह भी एक झूठी कहानी गढकर. खैर, अफ़सोस की बात है कि इस्लाम के ये तथाकथित संरक्षक किसी महिला के दर्द को समझना तो दूर उससे बद्सुलूकी करने मे अपनी शान समझते है, लेकिन इससे भी अफ़सोसजनक बात रही, यहां के उर्दु-मीडिया द्वारा इस खबर को खास तबज्जो न दिया जाना. जरूर यहां इनका विश्व-बन्धुत्व पक्षपातपूर्ण हो हिलोरे मारने लगता होगा. शायद इन्हे भी बचपन मे झूठ बोलना बहुत सिखाया गया होगा. दूसरों को बुरा बताने वाले ये लोग, काश, तनिक अपनी गिरेबां मे झांककर आस्ट्रेलिया से कुछ सबक लेते कि आस्ट्रेलिया ने तो आखिरकार न सिर्फ़ उस भारतीय डाक्टर को मुआवजा दिया, बल्कि उससे क्षमा भी मांगी, जिसे भूलबश वहां आतंकवादी समझ लिया गया था.

16 comments:

  1. बुद्ध-कथन,
    सत्य-गहन।

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  2. आप के लेख से सहमत हे जी, आप ने एक एक बात सही लिखी, धन्यवाद

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  3. गोदियाल जी

    आपने जो कहा उसमे दम है!

    पर जितना भी कहो कम है,



    कुंवर जी,

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  4. जागरूक करने वाली पोस्ट ...सत्य और सार्थक ...

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  5. गोदियाल जी बहुत ही अच्छा लिखा है अपने इस्लाम में मानवता नाम की कोई चीज नहीं है ये हिंसक भेडिये के समान होते है आज विश्व में हिंसा, हत्या और आतंकबाद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा है, बंगलादेश की कोई भी हिन्दू महिला नहीं बची है जिसका शील भंग इन्होने ने नहीं किया पोस्ट बहुत अच्छी है. बहुत-बहुत धब्याबाद

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  6. आपके दु:ख में शामिल हूं। मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवि इस पर कभी विलाप नहीं करते। उन्हें भारत विरोध से फुरसत मिले मिले तो समानता की बात करेंगे। पाकिस्तान में ही नहीं कुछ खास लोगों के द्वारा मुसलमानों को छुटपन से ही इस्लाम का उल्टा पाठ पढ़ाया जाता है।

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  7. समाज में कुछ ऐसे तत्व हैं जो इसी से अपनी जीविका चलाते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्या सही है क्या नहीं.

    सार्थक एंव सुन्दर लेख हेतु साधुवाद.

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  8. यह लेख तो बहुत बढ़िया रहा!
    --
    नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे ।
    कुछ ने मँहगाई फैलादी, कुछ हैं मँहगाई के मारे ।।

    काँपे माता काँपे बिटिया, भरपेट न जिनको भोजन है ।
    क्या सरोकार उनको इससे क्या नूतन और पुरातन है ।

    सर्दी में फटे वसन फटे सारे । नव-वर्ष खड़ा द्वारे-द्वारे।

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  9. बंगला देश युद्ध की याद कर रौंगटे खड़े हो जाते हैं ।
    आज भी नर संहार की एक एक खबर याद है ।

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  10. ‘इस्लाम के ये तथाकथित संरक्षक किसी महिला के दर्द को समझना तो दूर .....’

    तभी तो..... बुर्के की प्रथा है :(

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  11. आप के लेख से सहमत हे
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.

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  12. आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

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  13. उम्दा पोस्ट !
    सुन्दर प्रस्तुति..
    नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !

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  14. सत्य .... जागरूक करने वाली पोस्ट ....

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सहज-अनुभूति!

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