Saturday, March 14, 2009

फिरंगी शांता !

पहली बार वह फ्रैंकफर्ट होते हुए मिआमी जा रहा था, अन्यथा उसने अपनी पिछली ३-४ ट्रिप वाया हीथ्रो ( लंदन) होते हुए ही तय की थी । दिल्ली से हीथ्रो अथवा फ्रंकफुर्ट का करीब ८- ८.३० घंटे का सफर उतना कष्टदायी और उबाऊ नही लगता, जितना की वहाँ से मिआमी तक का ९- ९.३० घंटे का लगता है। इसका एक कारण यह भी है कि आदमी जब शुरुआती उड़ान पकड़ता है तो वह मानसिक और शारीरिक रूप से तरोताज़ा होता है। इसलिए यह सब आसानी से झेल लेता है, मगर ज्यों-ज्यों वह बीच में ४-५ घंटे के स्टॉप ओवर के बाद आगे बढ़ता है, उसकी शारीरिक क्षमताये जबाब देने लगती हैं। यही वज़ह है कि लोग इतनी लम्बी हवाई उड़ान के बाद कुछ दिनों तक जेट-लेग का शिकार होते हैं। लुफ्थांसा के विमान में बैठे-बैठे, वह अब तक विस्की के दो पैग ले चुका था, मगर आँखे थी कि झपकने का नाम ही नही ले रही थी। वह अपने अतीत को खंगालने लगा। उसका अतीत उसके सामने एक चल-चित्र की तरह परत दर परत खुलता चला गया।

राकेश २४ साल का था, जब उसने अपने पूरब को छोड़, सुदूर पश्चिम के एक विकसित राष्ट्र की और, या यूँ कहे कि दुनिया के एक सबसे विकशित राष्ट्र की और रुख किया था। जिंदगी की जद्दो-जहद में इन्सान को कितने कष्टों का सामना करना पड़ता है , क्या- क्या सपने पालता है इंसान, और फिर उनको सच में बदलने के लिए क्या क्या जोखिम नही उठाता, यही सब कुछ इस वक्त राकेश की आंखो में घूम रहा था। उसके भी दिल में एक ऊँचे दरख्त को पाने की भरपूर चाह थी । अमेरिका आने के लिए उसे कितनी मस्श्कत करनी पड़ी थी, और उसके बाद………… ! पिछले १४ साल का पूरा लेखा- जोखा उसके सामने था ।

चंडीगढ़ से होटल प्रबंधन मे डिग्री लेने के बाद उसने तकरीबन एक साल मसूरी के एक होटल मे बतौर स्टूअर्ड्स नौकरी की । इस नौकरी के दौरान ही उसकी मुलाकात एक बेहद मिलनसार और उदार दिल अमेरिकी स्टीव जॉन्सन और उसकी प्रेमिका मार्या से हुई । स्टीव विश्व बैंक के साक्षरता और गरीबी उन्मूलन से संबंधित गैर सरकारी संस्थावो (N.G.O) को आर्थिक मदद से संबंधित कार्यो से जुडा हुआ था और उतराखंड मे चल रहे ऐसे कार्यक्रमों मे विश्व बैंक का प्रतिनिधित्व करता था। स्टीव जब भी देहरादून आता, नाईट हाल्ट के लिए मसूरी के इसी होटल मे ठहरता था। पिछली बार जब वह मसूरी आया था तो राकेश की ड्यूटी उसी के कमरे में थी। स्मार्ट और प्लेजिंग पर्सनेलिटी और मेहमान को सर्व करने का राकेश का अंदाज़ स्टीव और उसकी महिला मित्र को बहुत भाया । अबकी बार, जब वे मसूरी आए थे तो उन्होंने रिसेप्शन पर पहले राकेश के बारे में ही पूछा था। इस बार की विजिट में राकेश, स्टीव के बहुत करीब आ गया था । इस बीच राकेश, जिसका की अपना एक ही सपना था कि अमेरिका जाना है, वहाँ जाने के उपलब्ध सभी वैध तरीको में असफल प्रयास कर चुका था, उसने मौका पाकर अपनी समस्या स्टीव के सामने रखी। स्टीव कुछ कहता इससे पहले ही मार्या बोल पड़ी ” कमौन राकेश ! डोंट लूज हार्ट….. हम तुम्हे शीघ्र ही अमेरिका आने का एक मौका देंगे। मार्या जिस विश्वास के साथ उसे आश्वासन दे रही थी, और इस बीच स्टीव जिस तरह से अपनी गर्दन हिला कर हामी भर रहा था उससे राकेश को आशा की एक किरण नज़र आने लगी थी।

कुछ दिन रुकने के बाद स्टीव और उसकी महिला मित्र अमेरिका वापस लौट गए। करीब ३ हफ्ते बीते होंगे कि एक दिन अचानक दोपहर में होटल की रेसप्शनिस्ट ने एक कुरिएर का पैकेट राकेश के हाथ में थमाया ! राकेश ने बिना समय गवाए जल्दी से लिफाफा खोला और उस वक्त उसकी खुसी का ठिकाना नही रहा, जब उसने स्टीव का एक लैटर जो उसके नाम था, और साथ में दो और लैटर, एक लैटर जो किसी संस्था के लैटर हेड पर था, और अमेरिकन कोउन्सूलेट जनरल न्यू देलही के नाम था। और एक और पत्र जो उसने किसी संस्था के नाम देहरादून के एड्रेस पर लिखा था । स्पोंसर लैटर में, जिसमे कि राकेश को स्टीव ने अपनी आरगेनाइजेशन से संबंधित एनजीओ बताया था, और उसे मिआमी में एक अंतराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। साथ में कुछ फार्म और ब्रौचेर भी संलग्न किए गए थे। राकेश को लिखे पत्र में स्टीव ने उसे कुछ आवश्यक निर्देश दिए थे, ताकि अमेरिकी कोंसुलेट पर वीसा आवेदन के वक्त और साक्षात्कार के दौरान कोई दिक्कत न हो।

आर्थिक रूप से भी कोई खास दिक्कत नही थी, अतः उसने तुरंत सभी कागजात और टिकट ट्रेवल एजेंट के माध्यम से तैयार कराये और स्टीव के निर्देशानुसार उसकी देहरादून स्थित संस्था से ‘स्पोंसेर कम नो ओब्जेक्शन लैटर’ तैयार कर दिल्ली में अमेरिकन एम्बेसी पर वीसा के लिए आवेदन किया। किस्मत साथ दे रही थी, इसलिए बिना देरी के उसको वीसा मिल गया। बस फिर क्या था, वह दिन गिनने लगा था और घर पर उसके अमेरिका जाने की तैयारिया सुरु हो गई थी ! सामान पैक करते वक्त माँ कभी कभार फफक कर रो पड़ती ! माँ को आख़िर बेटे के बारे में दिल में बहुत सारी चिन्ताए जो घर कर रही थी। बेटा अपना घर, शहर, देश छोड़कर सात समंदर पार जा रहा था । लेकिन राकेश पर तो जैसे अमेरिका जाने का भूत सवार था।

आख़िर विदाई की घड़ी भी आ गई। माता पिता और उसके दो ख़ास मित्र उसे विदा करने नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे तक आए। देर रात की फलाइट थी, हवाई अड्डे के प्रस्थान मुख्य द्वार पर उस वक्त उसको यह देख बड़ी निराशा हुई थी कि वह देहरादून से साथ आए माता पिता और मित्रो को ठीक से गले भी नही मिल पाया, क्योंकि भीड़ की वजह से वहाँ तैनात ट्राफिक पुलिश के जवानों ने टैक्सी को जल्दी हटाने के लिए ड्राइवर पर दबाब डालना सुरु कर दिया था। पुलिश वाले धडाधड़ चालान काटे जा रहे थे । ड्राइवर देहरादून का था इस लिए उसे पार्किंग के बारे में भी ठीक से जानकारी नही थी । अतः जैसे ही सIमान उतारा और राकेश ट्राली लेकर आया , पुलिश वाले ने टैक्सी आगे बढाने को कह दिया। माता पिता और मित्र गाड़ी से ही हाथ हिलाते रह गए।

अपने देश से बिल्कुल हट कर एक भिन्न तरह की अजनबी धरती पर उतरने के बाद , वहाँ की चकाचौन्द और अपने देश और वहाँ के ढांचागत अन्तर को देख वह हतप्रभ था। साथ ही वहाँ की चिपचिपाहट भरी जून की गर्मी से परेशान भी था, वैंसे तो जून के महीने में मिआमी चूँकि तटीय शहर होने की वज़ह से वहाँ का तापमान ७५ से १०० डिग्री फ़ारेनहाइट तक रहता है मगर स्वैटिंग इंसान को परेशान कर देती है । खास कर उस इंसान को जो ठंडी जगह से गया हो । एयरपोर्ट से अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहाँ ग्रेटर मिआमी जाने के लिए उसने ७ डॉलर में कैब ली और अपने गंतव्य पर जा पहुंचा। भारत से यहाँ तक की उसकी यह एक वैध एंट्री थी, मगर तै समय पर लौटने से बचने के लिए फिर वह उस देश में ख़ुद ही गुम हो गया था। यहाँ आकर अब उसे मेह्सूश हो रहा था की दूर के ढोल कितने सुहावने लगते है। वक्त बेवक्त माँ के हाथ की बनी रोटियों की याद आ जाती । पेट पालने और कुछ कमाने की चाह में महीनों एक गैस स्टेशन की नौकरी करके गुजारे, और फिर मिआमी से जैक्सनविल्ले जाने वाले हाईवे पर बोकारटन के पास एक मोटल में स्ट्वार्ड की जॉब पकड़ ली।

दिन गुजरे, साल गुजर गए। एक दिन किसी काम से जब वह मिआमी से वेस्ट पाम बीच जाते वक्त मंगोनिया पार्क स्टेशन पर उतरा था तो उसकी नज़र एक हिन्दुस्तानी सी दिखने वाली लड़की पर जा टिकी। वीक एंड की छुट्टी थी, अतः वह अपना वक्त जाया करने के पूरे मूड में था। लड़की बेंच पर अकेली बैठ थी, वह उसके इर्दगिर्द घूमने लगा। जाने उसमे ऐसा क्या था की राकेश उस पर मुग्ध सा हो गया था। लड़की भी समझदार थी, जल्दी भांप गई की यह जनाब क्या चाहते हैं । वह बिना नज़र हटाये राकेश को देख मंद मंद मुश्कुराने लगी ! बस फिर क्या था ! राकेश को मानो टी-टी ने हरी बत्ती दिखला दी हो, वह बेंच के दुसरे सिरे पर बैठता हुआ ‘हाई’ बोल गया । लड़की ने भी ‘हाई’ में ही जबाब दिया । बस फिर जो कहानी सुरु हुई तो अगले सवा घंटे तक चलती चली गई ! राकेश मन ही मन आश्चर्यचकित था कि अभी कुछ देर पहले तक अनजाने से दो लोग, कैसे इतनी सारी बात कर गए और अपने- अपने बारे में इतना सब कुछ बता गए ! उसने अपना नाम शांता बताया था ! और फिर मिलने के लिए अगले वीक एंड पर, राकेश से फ्लोरिडा प्रान्त के दुसरे तट सरासोता बीच पर आने के लिए कह गई थी ! सरासोता बीच अपने सफेद बालू और शांत और एकांत जगह के लिए सैलानियों के लिए एक पसंदीदा जगह है ! सरासोता खाडी पर लोग बोटिंग और फिशिंग का लुफ्त उठाने भी बड़ी तादाद में आते हैं ! वैसे तो मिआमी बीच भी एक बड़ी खूबसूरत जगह है मगर वहl पर काफी भीड़ भाड़ रहती है !

अगले वीक एंड पर तय समय के आधार पर राकेश सरासोता बीच जा पहुंचा ! उसे यह जान कर खुसी हुई कि शांता पहले से उसका इंतज़ार कर रही थी ! इस बार शांता का मिलने का अंदाज़ भी काफी निराला था जो की राकेश को दिल तक छु गया था ! छुट्टी का दिन होने की वजह से राकेश अपना पूरा वक्त शांता को समर्पित करना चाहता था ! आसमान पर हलकी बदली छाई हुई थी और तापमान भी तकरीबन ७० डिग्री फ़ारेनहाइट के आसपास था , इस खुशनुमा मौसम मे बीच पर बैठे-बैठे दोनों घंटो बाते करते रहे ! राकेश यह जानकर अति उत्साहित था कि शांता का ओरिजिन भी उत्तराखंड ही था ! शांता के पिता कृष्ण मोहन पन्त पिछले ३० सालो से यूरोप की एक बहुत बड़ी फर्म जिरोक्स में अमेरिका के विल्सनविल स्थित ऑफिस में रिसर्च एंड डेवलोप्मेंट डिविजन मैं बतौर साइंटिस्ट नियुक्त थे! भारत से निकलने के बाद कुछ साल तक वे इस फर्म के यूरोप स्थित हेड ऑफिस में सर्विस इंजिनियर के पद पर कार्यरत रहे और बाद में उन्हें कंपनी ने अपने यू एस स्थित कार्यालय में ट्रान्सफर कर दिया और तभी से वे लोग अमेरिका में रह रहे थे ! वैसे शांता का जन्म तो अमेरिका में ही हुआ था ! मगर वह अपनी माँ के साथ बचपन में कई बार उत्तराखंड आई थी और वहाँ की हर चीज़ से वाकिफ थी ! उसे भी यह जान कर बहुत खुसी हुई की जिस ६ फ़ुट लंबे हैण्डसम नौजवान से वह मिली है वह भी उत्तराखंड का ही है !

महीने गुजरे और साल गुजर गया ! दोनों की मुलाकातों और फ़ोन पर बातो का सिलसिला अब इतना बढ़ चुका था कि कब दोनों एक दुसरे को दिलो जान से चाहने लगे, दोनों को पता ही न चला ! इस बीच दो तीन बार वह शांता के घर जो कि हिअलेह में था, भी हो आया था ! शांता की माँ एक सरल स्वभाव की हंसमुख महिला थी ! पिछले २५-३० सालो से अमेरिका में रहने के वावजूद भी वह अपने उत्तरांचल की सैली को नही छोड़ पाई थी ! राकेश को शांता की माँ का बात बात पर आधा गदवाली और आधा अंग्रेजी मिक्स वह डायलोग ” फुंड गो ” ( जिसे शुद्ध पहाडी भाषा में ‘ फुनै सौर’ या ‘फुंड सौर’ तथा हिन्दी में मजाकिया शैली में ‘दूर हट‘ कहते हैं बहुत अच्छा लगता था ! घर की सारी सजावट में भी पूरी तरह हिन्दुस्तानियत रची बसी थी ! लेकिन वह अभी तक शांता के पिता से नही मिल पाया था ! जहा एक और वह मन ही मन शांता को अपनी जीवन संगनी बनाने का निर्णय ले चुका था, वही बहुत सी आशंकावो के चलते उसकी रातो की नींद भी छीन ली थी !

इस बार के सप्ताहान्त में दोनों ने फ्लोरिडा से बाहर जाने का प्लान बनाया था, अतः दोनों तय कार्यक्रम के अनुसार सुबह-सबेरे शांता कि गाड़ी से जोर्जिया के मकोन शहर को निकल पड़े ! मकोन पहुँचने का वेंसे तो नजदीकी रास्ता लेस्बर्ग और लेक सिटी होते हुए निकलता था मगर दो प्रमियों को किस बात कि जल्दी अतः उन्होंने तटीय हाइवे से पहले सवान्नाह और फिर वहाँ से डब्लिन होते हुए मकोन निकलने का फ़ैसला किया ! राकेश एक अनुभवी और कभी-कभी, कुछ-कुछ अनाडी ड्राईवर की भांति ड्राइव करता हुआ १०० मील प्रति घंटा की रफ़्तार से हाइवे पर गाड़ी भगाए जा रहा था ! बातो के बीच में राकेश की हर नई बात पर शांता ‘अजी तुसी ग्रेट हो जी’ वाला डायलोग मारती थी, अतः वह भी उसे अब ‘ माय फिरंगी शांता’ कह कर संबोधित करता था! वह जब भी शांता को जरा सा भी ध्यानमग्न अथवा खामोश देखता तुंरत कहता,एक शेर अर्ज है :

हर्ज क्या है तनिक पूछने में, हाल-ए-जनाब,
जान-ए-मन, चुप रहकर न सितम ढाया करो,
मुरदों की ज़ियारत के लिए कभी-कभार
ऐ गुलबदन, क़ब्रिस्तान भी घूम आया करो !


शेर सुनकर शांता वाह-वाह करती, हाइवे पर थोडी देर रुकने और एक मोटल में नाश्ता करने के बाद वे फिर हँसी मजाक और सफर का पूरा लुफ्त उठाते हुए अपने गंतव्य की और बढ़ने लगे : राकेश ने एक पुराना गदवाली गीत जो की वह शांता को एकांत के पालो में पहले भी कई बार सुना चुका था गुनगुनाना शुरु किया !

ट्रिप से लौटने के दौरान शांता ने अगले वीकएंड पर उसकी मुलाकात अपने पिता से करवाने कि बात कही ! राकेश तो मानो इसी पल का इंतज़ार कर रहा था! उसने हामी भर दी ! घर पहुचकर डाईनिंग टेबल पर शांता ने जब पिता से राकेश के बारे में बात छेडी तो उसके पिता ने कोई खास इंटेरेस्ट नही दिखाया ! मानो उनके दिमाग में कुछ और ही पक रहा हो ! शांता ने बात को वही खत्म करना उचित समझा ! अगले दिन फिर नाश्ते पर उसने अपने पापा से राकेश की बात उठाई और एक साफ़ अंदाज़ में यह संकेत दे दिया की वे एक दुसरे को चाहते है ! उसको इस बात पर इतना सीरियस देख पिता ने उससे राकेश के बारे में जानकारी ली की वह क्या करता है? कहाँ का रहने वाला है ? कब और कैंसे अमेरिका आया, इत्यादि इत्यादी…! चूँकि शांता अब तक राकेश के बारे में बहुत कुछ जानती थी अतः उसने पिता को उसके बारे में सारी जानकारी दे दी ! उसने साथ ही यह भी बताया की वीकएंड पर राकेश आपसे मिलना चाहता है ,पिता ने भी मिलने की हामी भरी और ऑफिस को निकल पड़े !

राकेश, शांता के कहे अनुसार समय पर उसके घर पहुँच गया, शांता ने ही उसे पिता से परिचय कराया ! हIलाँकि शांता ने राकेश के बारे में पहले ही पिता को सब कुछ बता दिया था फिर भी शांता के पिता ने राकेश से पुनः सारी बातें पूछी ! और फिर वही हुआ जिसका राकेश को डर था ! शांता के पिता ने राकेश की और मुखातिब होकर थोड़ा गंभीर मुद्रा में बोलना शुरू किया ! देखो राकेश, जहा तक तुम्हारा और शांता का दोस्ती का सवाल है, मुझे इसमे कोई ऐतराज नही है लेकिन रही बात इस दोस्ती को संबंधो तक ले जाने की, तो मुझे भी इस बात की खुशी थी की तुम उत्तराखंड के हो और हम भी कभी उत्तराखंड के थे ! लेकिन जहा तक शांता के भविष्य का सवाल है ! यह तुम भी भली भांति जानते हो कि तुम गैर कानूनी ढंग से इस देश में रह रहे हो ! और ०९/११ के बाद यहाँ कि सरकार गैर कानूनी ढंग से रह रहे लोगो के प्रति काफ़ी शक्त हो गई है और कभी भी अपनी गिरफ्त में ले सकती है ! राकेश के बोलने से पहले ही शांता ने सफाई दी ” नही पापा, राकेश यहाँ पर पिछले ८ सालो से रह रहा है और उसने अटोर्नी के मार्फत ग्रीन कार्ड पाने के लिए ऑलरेडी आवेदन कर दिया है और उसे शीघ्र ही ग्रीन कार्ड मिल जाएगा” ! पिता बोले तुम चुप रहो, यह इतना आसान खेल नही है वैसे भी सरकार ने आब्रजन कानूनों को काफी शक्त कर दिया है ! साथ ही उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने शांता के लिए मनोज शर्मा नाम के एक शख्स को देखा है और उसके पिता से भी मिल चुके है वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले है लेकिन मनोज भी यही का पला-बढ़ा है और न्यू ओरलेंस में अपना बिज़नस करता है ! साथ ही पिता ने शांता और राकेश को अपनी दोस्ती को सीमित स्तर तक रखने कि हिदायत दी !

राकेश पर तो मानो किसी ने घडो पानी उडेल दिया हो ! कुछ कहना चाहता था मगर गले से शब्द नही निकल रहे थे ! शांता और उसकी मम्मी सोफे के बगल में गुमसुम खड़े थे ! राकेश उनके घर से बाहर निकला मगर किसी ने भी कुछ नही कहा ! घर लौटे वक्त, एक ही सवाल जेहन में था अब इसके बाद क्या ? उसे धीरे-धीरे अपनी सीमाओं और मजबूरियों का अहसास होने लगा था ! एक बार तो दिल किया कि मजनू कि तरह बगावत का बिगुल बजा दूँ लेकिन यह भी भली भांति जानता था कि पराये देश में जहा वह पिछले ८-९ साल से गैर कानूनी तौर पर रह रहा है वहाँ उसका साथ देगा कौन ? और शांता के पिता ने अगर सबक सिखाने कि ठान ली तो……… ! शांता ने भी पिता को हर तरफ़ से मनाने कि कोशिश कि मगर माँ-बाप कुछ भी सुनने को राजी न थे ! वैसे तो अगर वह चाहती तो पाश्चात्य संस्कृति के हिसाब से अपना फ़ैसला ख़ुद ले लेती लेकिन हिन्दुस्तानी संस्कृति जो उसे माँ से विरासत में मिली थी उसने कही उसके पावो को जकड लिया था ! इस घटना के बाद राकेश और शांता में स्वाभाविक दूरियां बदने लगी ! कभी-कभार फ़ोन पर ही हाई-हेल्लो होती थी ! राकेश को शांता के साथ गुजारा पल एक मीठे स्वप्न कि तरह लगने लगा !

अमेरिका आने के बाद वह दो बार स्टीव से भी मिलने गया था ! स्टीव ने उसके ग्रीन कार्ड पाने में भी काफ़ी मदद की थी उसे स्टीव ने जल्दी ग्रीन कार्ड पाने के लिए कांट्रेक्ट मेरेज करने कि सलाह भी दी थी मगर वह रास्ता उसे उचित नही लगा था मगर कभी कभार वह सोचता था की अगर सुरु में उसने स्टीव की सलाह मान ली होती तो सायद शांता उसे मिल गई होती ! आज उसे ठीक ९ साल ८ महीने के बाद ग्रीन कार्ड मिला था ! एक बार सोचा कि शांता के घर जावू और उसे इस बारे में बताऊ मगर अब क्या फायदा, अभी दो महीने पहले ही शांता ने उसी शर्मा नाम के सख्स से अपनी एंगेजमेंट की ख़बर फ़ोन पर राकेश को दी थी, उसने राकेश को शादी की डेट भी बताई और फ़ोन पर ही निमंत्रण भी दिया था ! राकेश अपनी किस्मत पर मुस्करा भर दिया था, कभी खुशी - कभी गम वाली स्थिति उसके साथ थी ! अपने घर वालो को ग्रीन कार्ड मिलने की ख़बर उसने फ़ोन पर दी तो माँ- बाप के चेहरे खिल उठे ! अब ९-१० साल के बाद उनका बेटा वापिस अपने वतन आ सकेगा ! नवम्बर में वह भारत लौटा ! माता पिता ने पहले से ही एक लड़की देख कर रखी थी और बस फिर क्या था, चट मंगनी और पट व्याह ! राकेश शादी के तीन महीने बाद अमेरिका वापस लौटा, मगर इस बार उसकी स्थति बिल्कुल अलग थी, कही भी दिल नही लग रहा था! कभी शांता की पुराने यादे ताज़ा हो जाती, तो कभी नई नवेली दुल्हन की याद आ जाती ! ६ महीने रुकने के बाद वह यह सोच कर कि अब वह अपने देश में ही सेटल हो जाएगा, वह वापस लौट आया !
मगर कहते हैं न कि इंसान को चैन कही पर भी नही है, घर वाले भी इस बात से ज्यादा खुश नही थे कि वह हमेशा के लिए अमेरिका छोड़ आया है ! राकेश को भी लग रहा था कि कही न कही मानसिकता और दिखावे की संस्कृति आपस में क्लैश कर रही थी अतः एक लम्बी अवधि के बाद उसने पुनः अमेरिका जाने का फैशला कर लिया था ! अभी कुछ साल पहले ही उसका एक स्थानीय दोस्त व पुराना क्लासमेट मोहन भी अमेरिका गया था! वहा जाने के लिए उसने भी एक निराला अंदाज़ चुना था ! राकेश ने उसके घर वालो से उसका पता ठिकाना लिया और अमेरिका के लिए निकल पड़ा ! मिआमी पहुच वह अपने एक और दोस्त जिससे उसकी मुलाकात अमेरिका में ही हुई थी, उसके घर जा पहुँचा ! और फिर से एक स्टोर की जॉब पकड़ ली, सालभर और गुजर जाने के बाद भी उसकी मुलाकात मोहन से नही हो पाई थी क्योंकि जो पता ठिकाना उसके घर वालो ने उसे दिया था, वह उसे बदल चुका था ! उसने अपने घरवालो से मोहन के घर जाकर उसका नया पता ठिकाना देने को कहा ! घरवालो ने उसका फ़ोन नम्बर लाकर राकेश को दे दिया !

और आख़िर एक दिन फ़ोन पर बातचीत के बाद वह मोहन से मिलने पहुँच गया, मोहन कोलंबस में रहता था, वहां मोहन ने उसे बताया की उसने ग्रीन कार्ड पाने के लिए एक अमेरिकी महिला जो की हिन्दुस्तानी ओरिजिन की है से कांट्रेक्ट मेरेज कर ली है ! उस महिला ने आर्थिक लाभ के लिए यह मेरेज की थी ! यू.एस.सी.आई.एस के उस कांट्रेक्ट के मुताविक ३ साल तक वे कानूनी तौर पर पति पत्नी होंगे, और उसे एक निश्चित रकम प्रतिमाह उस महिला को देनी है ! उसने शाम को उसे उस महिला से मिलाने का वादा भी किया ! शाम को जब दोनों उस घर में पहुचे और घंटी देने पर उस महिला ने जब फ्लैट का दरवाज़ा खोला तो उसे देखते ही राकेश के मुह से एक चीख निकल गई ! उसने कहा तुम ! और महिला ने कहा तुम ! मोहन उन दोनों का मुह आश्चर्य से देख रहा था ! जी हां वह शांता थी ! शांता ने राकेश और मोहन को अन्दर ड्राइंग रूम में आने को कहा ! राकेश के माथे से परेसानी की लकीरे साफ़ नज़र आ रही थी ! वह तुंरत जानना चाहता था की यह सब क्यो और कैंसे ?

शांता उन्हें बिठाने के बाद अन्दर किचन में चली गई थी, शायद काफी बना रही थी ! थोडी देर बाद वह लौटी, कप और केतली टेबल पर रखे और एक दर्द भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए राकेश से बोली ‘ तुम दोनों एक दुसरे को कैसे जानते हो? ‘ मोहन ने कहा, यह मेरा दोस्त और पुराना क्लासमेट है ! राकेश बिना कुछ बोले हाथ की उंगलिया उसकी तरफ़ गोल-गोल घुमाने लगा की कुछ बोल ! शांता इशारा समझ गई थी, उसने एक लम्बी साँस लेने के बाद कहा फिर कभी बतावूंगी ! राकेश था की सब कुछ अभी जानना चाहता था, वह कुछ बोलता इससे पहले शांता ने राकेश से पुछा अचानक कहा चले गए थे ? मैं तुम्हारे घर पर गई थी, मगर पता चला की तुम इंडिया चले गए हो ! मोहन बोला, हाँ यह शादी करने चला गया था ! शांता बोली, हो तो अब जनाब भी शादीशुदा है ! मोहन बोला, अरे अब तो एक मेहमान भी आ गया है उसके घर में ! तुसी ग्रेट हो जी, बड़े छुपे रुस्तम निकले शांता बोली , ये सारी बाते छोड़ अपने बारे में बतावो, राकेश ने जोर दे कर कहा!
शांता बोली, वैसे तो अब इन सब बातो को जान कर क्या करोगे लेकिन फिर भी बताये देती हूँ ! और फिर शांता ने जो कथा सुनाई उसे सुनकर राकेश की आँखे छलक आई ! शांता के पति मनोज और शांता के माता पिता का एक कार एक्सीडेंट में निधन हो चुका था ! वे लोग सभी न्यूओरलेंस में रात्रि को होटल में एक पार्टी से घर लौट रहे थे, जब उनकी कार एक ट्रक से टकरा गई ! जिसमे शांता और उसकी ७ महीने की बच्ची ही जिन्दा बच पाई थी ! शांता का सब कुछ ख़तम हो चुका था! अतः उसने अब फिर से, घर न बसIने की कसम खा ली थी, और इस तरह अपना जीवन यापन करने लगी थी, वह एक नर्सिंग होम में जॉब भी करती थी, और एक निश्चित आर्थिक रकम कांट्रेक्ट मैरेज के जरिये मोहन से भी मिल जाती थी ! राकेश ने एक गहरी साँस ली और धीरे से बोला, बहुत देर हो गई शांता, हम लोग बहुत दूर चले गए है ! वह शांता को कोई दिलाशा भी नही दे पा रहा था ! भारी मन से बस इतना कह के वह शांता के फ्लैट से निकल गया था कि कभी किसी मुस्किल घड़ी में उसकी जरुरत पड़े, तो याद कर लेना !

अचानक एक उद्-घोषणा (अन्नौंसमेंट) से राकेश चौंक गया मानो उसकी नीद खुल गई हो , ” यात्री कृपया ध्यान दे , हमारा विमान मिआमी के अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शीघ्र ही उतरने वाला है, सभी यात्रियों से निवेदन है कि कृपया वे अपने लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन स्विच आफ कर दे और सीट बेल्ट बाँध ले, मिआमी का तापमान इस समय ८५ डिग्री फ़ारेनहाइट है, हम उम्मीद करते हैं की आपकी यह यात्रा सुखद रही होगी और आप हमें फिर से सेवा का अवसर देंगे, धन्यबाद “!
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2 comments:

  1. बड़ी ही रोचक और मर्मस्पर्शी कहानी थी दोस्त ............एक ही बार में सारी की सारी गटक गया

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  2. उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धयवाद अनिल कान्त जी !

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सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...